जानिए कौन है सहारनपुर में ‘आग’ लगाने वाली ‘भीम आर्मी’



सहारनपुर : मंगलवार दिन भर सहारनपुर के जलने के बाद देर शाम सहारनपुर के एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे ने आखिरकार कह ही दिया कि, ‘इस हिंसा के पीछे दलित युवा संगठन ‘भीम आर्मी’ है.’

दरअसल, पिछले 2 साल से वजूद में आया यह संगठन अब दलित क्रांति की मिसाल बन गया है. सहारनपुर में मंगलवार को इस संगठन के लोगों ने ‘आतंक’ का ऐसा साम्राज्य क़ायम किया कि पुलिस अफ़सरों को दौड़कर अपनी जान बचानी पड़ी. कई अफ़सर घायल हुए. पुलिस चौकी फूंक दी गई. भगवा गमछा या भाजपा का झंडा लगी हुई गाड़ी या राजपूत स्टीकर लगी बाइक अगर मिल गई तो फिर खैर नहीं.
बताते चलें कि सोमवार देर शाम ‘भीम आर्मी’ के अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद (खुद को रावण कहलाना पसंद करते हैं) ने बड़गांव के शब्बीरपुर बवाल में घायल दलितों के मुआवज़ा व हमलावर राजपूतों की गिरफ़्तारी को लेकर दलितों की पंचायत की सुचना एसएसपी को दे दी थी, जिसे प्रशासन ने अस्वीकार कर दिया गया था. लेकिन ‘भीम आर्मी’ ने पहले से ही ऐलान कर रखा था कि पुलिस प्रशासन की ओर से इजाज़त मिले या न मिले, पंचायत ज़रूर होगी.
मंगलवार सुबह सहारनपुर के गांधी पार्क में ‘भीम आर्मी’ के लोग जुटने लगे. बड़ी संख्या में युवाओं की भीड़ देखकर प्रशासन सकते में आ गया. आनन-फ़ानन में गिरफ़्तारी और बल प्रयोग करना पड़ा. पहले पुलिस ने भी जमकर लाठियां भांजी. मगर पुलिस ‘भीम आर्मी’ की ताक़त का सही अंदाज़ा नहीं लगा सकी. बाद में ‘भीम आर्मी’ के कार्यकर्ता पुलिस वालों पर ज़्यादा भारी पड़ गए. रामनगर में एसपी सिटी जैसे अफ़सर यहां से भाग लिए जबकि सीओ घायल हो गए. बेहट रोड पर बस में आग लगा दी गई.



क्या है भीम आर्मी

‘भीम आर्मी’ का संस्थापक एक दलित चिंतक सतीश कुमार को बताया जाता है, जो छुटमलपुर के रहने वाले हैं. बताया जाता है कि सतीश कुमार पिछले 10 साल से ‘शिव सेना’ जैसे किसी संगठन को बनाने की फ़िराक में हैं, जो दलितों का उत्पीड़न करने वालों को उन्हीं की भाषा में जवाब दे सके. मगर उन्हें कोई ऐसा क़ाबिल दलित युवा नहीं मिल रहा था, जो इसकी कमान संभाल सके.

5 साल पहले मिले चंद्रशेखर ‘रावण’


यहीं के एएचपी कॉलेज में राजपूतों का दबदबा था. यहां चंद्रशेखर पढ़ने आया. भीम आर्मी के लोग बताते हैं कि यह कॉलेज भीम आर्मी का प्रेरक केंद्र बना. यहां दलित छात्रों की सीट अलग थी. पानी पीने का नल अलग और तब आये चंद्रशेखर. इस नौजवान ने ठाकुरों के सामने झुकने से इंकार कर दिया. रोज़-रोज़ मारपीट होने लगी. स्कूली छात्र सड़कों पर टकराने लगें. कई बार राजपूत लड़के पीटे गए. दलित नौजवानों की हिम्मत बढ़ने लगी. और कॉलेज से राजपूतों का वर्चस्व ख़त्म हो गया. सतीश कुमार को नेता मिला और ‘भीम आर्मी’ का चंद्रशेखर को इसका अध्यक्ष बना दिया गया.

घड़कौली का ‘दे ग्रेट चमार’ बोर्ड विवाद

2014 में यह ‘भीम आर्मी’ का पहला टेन्योर था. सहारनपुर के देहरादून रोड पर आने वाले एक गांव के बाहर एक दलित नौजवान अजय कुमार अपनी जाति पर गर्व करते हुए एक बोर्ड लगा दिया. इस पर लिखा था —‘दे ग्रेट चमार’
दरअसल, यहां एक संगठन है ‘दे ग्रेट राजपुताना’. उनको यह बात6  बहुत बुरी लगी, उन्होंने इस बोर्ड पर कालिख पोत दी, जब यह बात बढ़ी तो हल्की-फुल्की मारपीट हो गयी. बात बड़ी हो गई तो गांव में अम्बेडकर की मूर्ति पर कालिख पोत दी. कुछ दलितों के साथ मारपीट भी हुई. तब किसी ने ‘भीम आर्मी’ को फोन कर दिया. आनन-फ़ानन में दर्जनों मोटरसाईकिल पर ‘रावण’ की टीम ने राजपूतों को सबक़ सिखा दिया.



भीम आर्मी की लेडी कमांडर


लगभग 5 साल से दलितों को उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित करने लिए ‘भीम आर्मी’ की लेडी कमांडर का नाम ममता है. आक्रामक ममता दलितों को लेकर हरिजन कहे जाने पर सख्त नाराज़ होती हैं. ममता गर्व से कहती हैं —‘हम चमार हैं, हरि के जन नहीं…’

कितनी है ‘भीम आर्मी’ की ताक़त

सहारनपुर के ज़िलाध्यक्ष कमल के अनुसार ‘भीम आर्मी’ के पास लगभग 10 हज़ार कार्यकर्ता हैं, जो समाज में जनजागरण अभियान चला रहे हैं. ‘भीम आर्मी’ का नेटवर्क हरियाणा, पंजाब और उत्तराखण्ड तक भी पहुंच रहा है. ताक़त का आलम आज सहारनपुर ने देख लिया.

ऊँची जात से जूनून की हद तक है नफ़रत

‘भीम आर्मी’ हिंसा का जवाब हिंसा से देने की विचारधारा पर काम करती है. इनके मूल में ऊँची जात के लोगों से नफ़रत दिखाई देती है. महासचिव राहुल नौटियाल के मुताबिक़, ऊंची जात वालों ने दलितों पर अत्याचार की कहानियां लिखी हैं, अब हम उपन्यास लिखना चाहते हैं. अब दलित पहले वाला नहीं रहा.

सड़क दुधली साम्प्रदायिक तनाव में मुसलमानों के पक्ष में थी ‘भीम आर्मी’

भीम आर्मी का लक्ष्य सिर्फ़ सवर्ण हिन्दुओं से बदला और अपने समाज की एकजुटता दिखाई देती है. मुसलमानों से वो कोई टकराव या नफ़रत नहीं रखते. जैसे यहां सड़क दुधली में मुसलमानों के साथ अम्बेडकर जयंती पर निकले जुलूस को लेकर हुए विवाद में ‘भीम आर्मी’ ने अपने समाज को जागरूक करने के लिए एक वीडियो जारी किया था, जिसमें इस विवाद के पीछे भाजपा और बजरंग दल की साज़िश बताई थी. साथ ही मुसलमानों से दलितों को दोस्ताना व्यवहार करने की सलाह दी थी.

अब प्रशासन के रडार पर ‘भीम आर्मी’


एसएसपी के मुताबिक़ मंगलवार को जनपद में जगह-जगह हुए हिंसा की ज़िम्मेदार ‘भीम आर्मी’ को बताए जाने के बाद यह तय हो गया है कि अब इस संगठन को मुश्किल वक़्त देखना पड़ेगा. संगठन के नेतागणों के विरुद्ध मुक़दमे लिखे जा रहे हैं और पुलिस इनके गिरफ्तारी और संघटन की कमर तोड़ने पर काम करेगी.

लेकिन यहां ये बात भी ध्यान रखने की है कि ‘भीम आर्मी’ का असल मक़सद सहारनपुर का माहौल ख़राब करना नहीं है, बल्कि वो इंसाफ़ चाहते हैं. शब्बीरपुर में बर्बाद लोगों के लिए मुआवज़ा चाहते हैं. और चाहते हैं कि जिन राजपुतों ने दलितों को अपना निशाना बनाया, उनकी गिरफ़्तारी हो, क्योंकि ‘भीम आर्मी’ का मानना है कि पुलिस इस मामले में कार्यवाही के नाम पर सिर्फ़ दलितों को ही निशाना बना रही है. यहां यह भी बताते चलें कि पिछले साल यानी 2016 के अप्रैल महीने के आख़िर में सहारनपुर के घड़कौली में दलित-ठाकुरों के बीच जातीय संघर्ष हुआ था. इस संघर्ष का मुख्य कारण अंबेडकर प्रतिमा पर कालिख पोतना रहा था. तब ‘जय राजपुताना’ ने पहल करते हुए महापंचायत का आयोजन किया था. उस समय भी ऐसा ही विवाद हुआ था, लेकिन पुलिस की कोई कार्रवाई उस समय ज़मीन पर नज़र नहीं आई ।।

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