अमर शहीद चतराराम मेघवाल बलिदान दिवस
12 मई 2001 को आज ही के दिन मणीपुर के इफफाल में उग्रवादीयो से लोहा लेते हुए शहीद हुए सिरोही जिले के जीरावल गांव के शहीद चतराराम मेघवाल अमर रहे ।
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राजस्थान के सिरोही जिले के रेवदर उपखण्ड क्षेत्र का गांव है जीरावल। यहां के दलित मेघवाल परिवार में 28 अगस्त 1973 को जन्मा चतराराम 28 अगस्त 1998 को केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल में शामिल हुआ।
तकरीबन तीन वर्ष फौज में रहा । इसी दौरान 12 मई 2001 को केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल की एच J 121 बटालियन पर इम्फाल मणिपुर में हुए उग्रवादी हमले के दौरान चतराराम की मौत हो गयी।
उनकी शहादत के दो रोज बाद उनकी पार्थिव देह उनके पैतृक गांव जीरावल पहुंची, जहां पर राजकीय सम्मान के साथ उनके शव की मेघवाल पद्धति से अंत्येष्टी कर दी गई। जिस जगह उन्हें दफन किया गया, वहीं पर एक शहीद स्मारक बनाया गया।
भारत सरकार द्वारा चतराराम को शहीद का दर्जा दिए जाने के बाद ग्राम पंचायत जीरावल ने ग्राम सभा की बैठक कर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया कि चतराराम के अंत्येष्टी स्थल ऊरिया तालाब के पास स्मारक बनाया जाए और शहीद सैनिक की आदमकद प्रतिमा बस स्टेण्ड पर और एक छोटी मूर्ति शहीद स्मारक स्थल पर लगाई जाए।
9 मार्च 2002 को क्षेत्रीय विधायक एवं तत्कालीन यातायात मंत्री राजस्थान सरकार छोगाराम बाकोलिया के हाथों दोनों मूर्तियों का अनावरण किया गया। साथ ही शहीद की स्मृति की स्थायी बनाने के लिए एक सामुदायिक भवन भी दलित बस्ती में बनाया गया। जैसा कि हम जानते ही है कि राजस्थान में देश सेवा के लिए सेना में जाने की विशेष गौरव की बात माना जाता है और अगर राष्ट्र सेवा करते हुए शहादत हो जाए तो समाज में उस सैनिक का दर्जा बेहद आला हो जाता है।
सरकार द्वारा मरणोपरांत शहीद का दर्जा दिया जाता है,
शहीद की शहादत को पूरा मान मिले, सम्मान मिले, ऐसी उसके परिजन, ग्रामजन तथा समाजजन अपेक्षा करते है। शहीद चतराराम के परिजन अशिक्षित होने की वजह से उनकी स्मृतियों को नहीं सहेज पाए, जिस मेघवाल जाति से चतराराम ताल्लुक रखते थे, वह भी इस क्षेत्र में काफी पिछड़ा हुआ समुदाय है, इसलिए उसे भी शहीद की शहादत का महत्व समझ पाने में अरसा लग गया। जिन समुदायों का यहां वर्चस्व है, उनके लिए एक मेघवाल का शहीद होना, शहीद होना नहीं बल्कि मरना भर है, इसलिए उनसे यह सहन नहीं हो सका कि उसकी प्रतिमा लगे।
राजेन्द्र लहुआ बाड़मेर
( स्वतन्त्र पत्रकार & सामाजिक कार्यकर्ता )
©2017_http://meghtimesbarmer.blogspot.in
राजस्थान के सिरोही जिले के रेवदर उपखण्ड क्षेत्र का गांव है जीरावल। यहां के दलित मेघवाल परिवार में 28 अगस्त 1973 को जन्मा चतराराम 28 अगस्त 1998 को केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल में शामिल हुआ।
तकरीबन तीन वर्ष फौज में रहा । इसी दौरान 12 मई 2001 को केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल की एच J 121 बटालियन पर इम्फाल मणिपुर में हुए उग्रवादी हमले के दौरान चतराराम की मौत हो गयी।
उनकी शहादत के दो रोज बाद उनकी पार्थिव देह उनके पैतृक गांव जीरावल पहुंची, जहां पर राजकीय सम्मान के साथ उनके शव की मेघवाल पद्धति से अंत्येष्टी कर दी गई। जिस जगह उन्हें दफन किया गया, वहीं पर एक शहीद स्मारक बनाया गया।
भारत सरकार द्वारा चतराराम को शहीद का दर्जा दिए जाने के बाद ग्राम पंचायत जीरावल ने ग्राम सभा की बैठक कर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया कि चतराराम के अंत्येष्टी स्थल ऊरिया तालाब के पास स्मारक बनाया जाए और शहीद सैनिक की आदमकद प्रतिमा बस स्टेण्ड पर और एक छोटी मूर्ति शहीद स्मारक स्थल पर लगाई जाए।
9 मार्च 2002 को क्षेत्रीय विधायक एवं तत्कालीन यातायात मंत्री राजस्थान सरकार छोगाराम बाकोलिया के हाथों दोनों मूर्तियों का अनावरण किया गया। साथ ही शहीद की स्मृति की स्थायी बनाने के लिए एक सामुदायिक भवन भी दलित बस्ती में बनाया गया। जैसा कि हम जानते ही है कि राजस्थान में देश सेवा के लिए सेना में जाने की विशेष गौरव की बात माना जाता है और अगर राष्ट्र सेवा करते हुए शहादत हो जाए तो समाज में उस सैनिक का दर्जा बेहद आला हो जाता है।
सरकार द्वारा मरणोपरांत शहीद का दर्जा दिया जाता है,
शहीद की शहादत को पूरा मान मिले, सम्मान मिले, ऐसी उसके परिजन, ग्रामजन तथा समाजजन अपेक्षा करते है। शहीद चतराराम के परिजन अशिक्षित होने की वजह से उनकी स्मृतियों को नहीं सहेज पाए, जिस मेघवाल जाति से चतराराम ताल्लुक रखते थे, वह भी इस क्षेत्र में काफी पिछड़ा हुआ समुदाय है, इसलिए उसे भी शहीद की शहादत का महत्व समझ पाने में अरसा लग गया। जिन समुदायों का यहां वर्चस्व है, उनके लिए एक मेघवाल का शहीद होना, शहीद होना नहीं बल्कि मरना भर है, इसलिए उनसे यह सहन नहीं हो सका कि उसकी प्रतिमा लगे।
राजेन्द्र लहुआ बाड़मेर
( स्वतन्त्र पत्रकार & सामाजिक कार्यकर्ता )
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